Saturday, September 7, 2013

“मर्यादा”

                     “मर्यादा”  
 “ऐसा भी क्या मटक मटक के चलना? पहले जवान छोरों को खुद हौसला देती हैं और उसके बाद दोष लगाती हैं कि रास्ते में छेड़ दिया. अगर तुम ही सलीके से चलोगी तो क्या कोई पागल है जो तुम्हारे पीछे आएगा? अरे सीताजी ने भी मर्यादा लांघी थी तब जाके रावण उनका हरण कर पाया था. ऐसे माँ बाप को तो जूते पड़ने चाहिए जो अपनी बेटियों को जीन पैंट पहन के बाहर निकलने देते हैं.”

काकी ताना मार ही रही थी कि प्रीति बोली...."अम्मा, अगर मैं वो कपडे पहन के बाहर निकलूंगी न, जो महाभारत और रामायण के सीरियल में दिखाते हैं कि पुराने ज़माने में लडकियां पहनती थी तो शाम को घर भी लौट के नहीं आ पाऊँगी.”

काकी सोच में पड़ गयी...!!!!

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